पढ़िए 66 साल के इस बुजुर्ग की कहानी, जिन्होंने मुंबई की गरीबी से बाहर निकल कर बना दिया 9 लाख करोड़ का बैंक

आज हम जान रहे हैं उस आदमी की कहानी जिसने हमारे देश के सबसे बड़े बैंक में से एक एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank) की स्थापना की थी। आज हम पढ़ेंगे कि कैसे एक साधारण से लेक्चरर ने रिटायरमेंट के बाद इस बैंक की शुरुआत की, और आज इतनी बड़ी विरासत बना बैठे हैं।

तो आइए जानते हैं उनका यहां तक का सफर। इसकी शुरुआत होती है साल 1977 में जब हसमुख पारेख जी ने इसकी शुरुआत की थी। उन्होंने इसकी शुरुआत बिना किसी सरकारी सहायता के ही कर ली थी। इस बैंक की मदद से उनका सपना था कि वो हर भारतीय को उनका एक अपना घर दिलाना चहते थे। और इस कारण से ही उन्होंने इस बैंक का नाम एचडीएफसी रखा था। जिसका पूरा मतलब था हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्पोरेशन।

और इसके आरंभिक समय में इंडस्ट्रियल क्रेडिट एंड इनवेस्टमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने इस बैंक की बढ़ने में सहायता की थी। बैंकिंग तो मानो हसमुख जी के खून में ही थी। उनके पिता एक बंकर थे। तो उनको बैंकिंग की बारीकियां और बाकी सभी गुण उनकी पिता से ही प्राप्त हुए थे। और उनके पिता द्वारा दिए गए ज्ञान की ही मदद से उन्होंने ये बैंक खुद के दम पर शुरू कर दिया। उन्होंने बैंकिंग के छेत्र में ही पढ़ाई भी की और देश विदेश से कई डिग्रियां भी ली और साथ ही साथ ज्ञान भी। और उन्होंने कई साल तक देश के कई बड़े बैंकों में काम भी किया और वहां से बैंक के अच्छे तरह से काम करने का अनुभव भी लिया।

और इसी ज्ञान की मदद से 1977 में ये कंपनी शुरू हुई और 1984 में ये भारत के सबसे बड़े बैंकों में से एक बन भी चुकी थी। और उनकी इस बेहतरीन पहल की वजह से उनको साल 1992 में पद्म भूषण भी भारत सरकार द्वारा दिया गया। और आज के समय में ये भारत की सबसे बड़ी प्राइवेट बैंक है। किसकी कुल वैल्यू 9 लाख करोड़ के आसपास की बताई जाती है। और आज ये भारत के सबसे सफल बैंक में से एक है और लाखों लोगों को रोजगार दे रही है, और भारत देश की इकॉनमी का एक अटूट अंग है।